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फिलिस्तीन के पूरे बेस्ट बैंक पर इसराइल कब्जा करने की तैयारी में जुटा

तेल अवीव। वेस्ट बैंक ( West Bank ) को लेकर इजरायल और फिलिस्तीन ( Israel and Palestine ) के बीच वर्षों से संघर्ष चल रहा है। पर अब ऐसा लगता है कि इजरायल इस पूरे मामले को खत्म करने के मूड़ में है। दरअसल, इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ( PM Benjamin Netanyahu ) ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि वह वेस्ट बैंक के बाकी बचे अन्य हिस्सों को भी अपने देश में शामिल करेंगे। इसके बाद से सियासी भूचाल आ गया है।
फाइल इमेज (GETTY)


पीएम बेंजामिन के इस फैसले को लेकर इजरायल के सहयोगी देश भी इसके विरोध में उतर आए हैं। दूसरी ओर फिलिस्तीनियों ( Palestinians ) का मानना है कि पूरा वेस्ट बैंक उनका है और उन्हें व्यापक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल है। फिलिस्तीन के लोग लगातार मांग कर रहे हैं कि वेस्ट बैंक को उन्हें लौटा दिया जाए। वे इसी अपने भविष्य के स्वतंत्र देश का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हैं।


नेतन्याहू ने प्रत्यक्ष तौर पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ( US President Donald Trump ) के साथ दोस्ताना संबंध का हवाला देते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि इजरायल के पास मध्यपूर्व के मानचित्र को फिर से बनाने का ‘ऐतिहासिक’ मौका है और इसे गंवाना नहीं चाहिए। उन्होंने अपने रूढ़िवादी लिकुड पार्टी के सदस्यों से कहा कि इस मामले में वे जुलाई में कदम उठाएंगे।


यह एक ऐसा अवसर है, जिसे हम जाने नहीं देंगे। अब ये माना जा रहा है कि नेतन्याहू के इस बयान से अरब और यूरोपीय सहयोगियों के साथ इजरायल के मतभेद बढ़ सकते हैं। साथ ही अमरीका में भी इजरायल को लेकर पार्टियों के बीच विवाद और भी गहरा सकता है।


इज़राइल ने 1967 में वेस्ट बैंक पर किया था कब्जा


प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने आगे कहा कि वेस्ट बैंक को पूरी तरह से कब्जे में लेने का इससे बड़ा ‘ऐतिहासिक’ अवसर आज तक नहीं मिला है। 1948 में देश की स्थापना होने के बाद यह पहला ऐसा मौका आया है।
बता दें कि इजरायल ने 1967 में मध्यपूर्व में हुए युद्ध के दौरान वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद वहां पर करीब 500,000 यहूदियों को बसा दिया। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण कभी भी औपचारिक तौर पर इसे इजरायल का क्षेत्र करार नहीं दिया।


यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल ने नेतन्याहू के बयान के बाद कहा कि इस तरह के कब्जे से अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा और इसे रोकने के लिए वे सभी राजनयिक क्षमताओं का इस्तेमाल करेंगे। दूसरी तरफ अरब देश सऊदी अरब ने भी इसका विरोध किया है और अरब लीग ने भी इसे ‘युद्ध अपराध’ बताया है। इसके अलावा जॉर्डन और मिस्र भी इसका विरोध कर रहे हैं।

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